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पहला प्यार आशा की किरण

आशा की किरण


एक आशा की किरण
गहन अमावस रात में
जुगनू की तरह टिमटिमाते हुये
नजर आयी उस रेगिस्तान में 
जैसे मरूस्थल के पहाड़ी तह पर
एक सरोवर सा आभास होता है।
डुबते को तिनके का सहारा
मिला जैसे प्यासे को पानी
चलता ही रहा अपने मंजिल की ओर
कहीं आँधी कहीं तूफान आयी
मेरे काँटों भरे मग में पर?
रूके न कदम डिगे नही साहस
होगा वही जो नियति ने लिखा।
कर्म से आदमी इंसान बना है।
दिखाकर इंसानियत 
जहां में भगवान बना है।
हजारों मुश्किलें लाख बद्दुआएं
पर हार न मानी जो होगा अच्छा होगा
बात ये मन ठानी।
कहते हैं ईश्वर सबके साथ होता है
अप्रत्यक्ष ही सही पास होता है
विश्वास में दुनिया कायम।
और आखिर में
मेरी आशा की किरण 
मिल ही गयी।
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पहला प्यार

बरसात के दिनों में छतरी बनना
सावन की बूंदों सी तन को छूना 
तुम्हारी होने की उम्मीद 
जगाती 
सर्द के मौसम में मफलर बन सताती 
फिर भी एक आस है दिल को
कभी न कभी कहीं न कहीं
हवाओं संग मुलाकात होगी।
बर्फ की वादियों में दीपक की लौ
ऊष्णता की आभा देती
मन को रोमांचित करती
एक अमिट ऊर्जा का संचय करती आज तक
जिंदा है इस दिल के पिटारे में
वो तुम्हारा पहला प्यार।

तोषण चुरेन्द्र 'दिनकर'

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2 Comments

Abhinav ji

30-Jun-2022 07:54 AM

Nice

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Gunjan Kamal

30-Jun-2022 01:16 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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